दोनों मित्र किसी नानबाई की दूकान पर जाकर खाना खाते, और एक चिलम
3.
माहिर अली कभी दोनों भाइयों को लेकर नानबाई की दूकान से भोजन कर आते, कभी किसी इष्ट-मित्रा के मेहमान हो जाते।
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दोपहर को जब भूख मालूम होती तो दोनों मित्र किसी नानबाई की दूकान पर जाकर खाना खाते और एक चिलम हुक्का पीकर फिर संग्राम-क्षेत्र में डट जाते।
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दो पहर को जब भूख मालूम होती तो दोनो मित्र किसी नानबाई की दूकान पर जाकर खाना खा आते और एक चिलम हुक्का पीकर फिर संग्राम क्षेत्र में डट जाते।
6.
सायकि्लों की खनकती हुई घंटियाँ टेर गलियों में ग्वाले की लगती हुई मोड़ पर नानबाई की दूकान से सोंधी खुशबू हवाओं में तिरती हुई ठनठनाते हुए बर्तनों की ठनक और ठठेरे का रह रह उन्हें पीटना पहली बारिश के आते उमंगें पकड़ छत पे मैदान में मेह में भीगना चित्र मिटते नहीं हैं हॄदय पर बने वक्त की साजिशें हो गईं बेअसर